ज़ुबाने पुलिस ज़ुबानी पुलिस : एक किताब जो तहरीर में उर्दू की गिरह खोलती है !
Jubane Polic Jubani Police

आसमोहम्मद कैफ़ । Twocircles.net
मंगलवार को ट्विटर पर गोरखपुर पुलिस ने एक अपराधी को गिरफ्तार कर जब वाहवाही लूटी तो एक एनआरआई यूजर ने इस पर मज़ेदार टिप्पणी कर दी। यूजर ने लिखा इस ट्वीट मे उर्दू अल्फ़ाज़ गिन लीजिये। यहां जिन शब्दों को इस्तेमाल किया गया था वो थे “बरामदगी, अदद ,नाजायज़ ,देशी ,जिंदा और ,कारतूस। जिस समय यह टिप्पणी पढ़ी गई , ठीक उसी समय उत्तर प्रदेश में तैनात आईपीएस अधिकारी कुँवर अनुपम सिंह द्वारा इसी विषय पर लिखी गई किताब ‘जुबानें पुलिस जुबानी पुलिस’ का अवलोकन हो रहा था । 2013 बैच के इस युवा आईपीएस अधिकारी ने पुलिस की ज़ुबान पर शानदार रिसर्च की है। 110 पृष्ठ वाली उनकी इस किताब में पुलिस द्वारा प्रयोग में लाएं जाने वाले उर्दू और फ़ारसी शब्दों के इतिहास ,उनके प्रयोग और रोचक इतिहास को संकलित किया गया है। कुँवर अनुपम सिंह की इस किताब को हाल ही में प्रयागराज के आरके लॉ पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है।
कुँवर अनुपम सिंह ने इस किताब में जिन दुर्लभ प्रविष्टियों का संकलन किया है उनमें नजीबाबाद के चर्चित सुल्ताना डाकू के विरुद्ध दर्ज हुई एफआईआर भी है। यह उर्दू में दर्ज की गई है। क़िताब का सबसे शानदार पहलू पुलिस की विवेचना, रोजनामचा आदि में इस्तेमाल किए जाने वाले उर्दू और फ़ारसी के 361 शब्दों को आसान भाषा मे समझाया जाना है। एक बार तो उर्दू का बहुत बड़ा जानकर भी इनके अर्थ को लेकर बग़ल झांक सकता है जैसे अपील कुनदा, अश या, आला नकब, अशनाहे राह, आला -ए -क़त्ल ,अक़वाम,अहकाम , आशनाई , अज़रुये दफा , आमद रवानगी, इकदमात , इस्तगासा , तरमीम, तामील,ताज़ीरत-हिन्द,जामा तलाशी,तबलक,क़स्दन ,कब्जुल वसूल ,तजवीज़ , तफ़्तीश ,तामील ,दीवान, दफ़ा,नक्शा नौकरी, फ़राहम ,फोटोनाश,बामुदैयत,बाला-बाला,
इतिहास में रुचि में रखने वाले कुँवर अनुपम सिंह को इस किताब पर रिसर्च करने में सालों लगे और लिखने में 6 महीने। अनुपम बताते हैं कि ” उन्होंने अपनी तैनाती के दौरान जाना कि पुलिसकर्मियों को विवेचना करते समय उर्दू और फारसी के शब्दों के चुनाव करने,समझने और लिखने में समस्या आती है। हालांकि अब धीरे धीरे इन कठिन शब्दो का इस्तेमाल कम हो रहा है मगर तब भी इन शब्दों पर खासकर नए भर्ती हुए दरोगा तो बहुत अधिक सँघर्ष करते हैं। वहीं से मुझे लगा कि ” पुलिस की ज़ुबान को पुलिस की ज़बानी होना चाहिए”,यह युवा दरोगाओं का मार्गदर्शन करेगी। तब मैंने यह किताब लिखी।
किताब में पुलिस की रवानगी और वापसी की ज़बान को लिखा गया है। इसके अलावा कई विवेचनाओं को उर्दू और फ़ारसी के अल्फ़ाज़ों से लबरेज़ होकर पेश किया गया है जैसे “मैं प्रभारी निरीक्षक सरकारी गाड़ी मालखाने से दिलवाने अंदर ,एक ज़रब पिस्टल मय 10 अदद कारतूस वास्ते देखरेख, गस्त, तलाश मफरुर निगरानी हिस्ट्रीशीटर या तफ़्तीश मुक़दमा मर्जुमात ,जांच अहकामात इलाका थाना हाजा में रवाना हुआ। ताला बंद करके माल खाना संतरी को चार्ज थाना बजिम्मे अफसर मातहत किया गया। इसी प्रकार वापसी, पंचनामा ,जांच ,दस्तंदाजी ,फर्द ,नोट सफ़ा चाहर्रूम और पुलिस के दूसरे लिखापढ़ी के कामकाज में उर्दू का दखल है। जिसको कुँवर अनूपम सिंह की इस किताब में खूबसूरती से समझाया गया है।
गाजियाबाद में तैनात युवा दरोगा नवीन कुमार इन किताब को अपने लिए बेहतरीन दस्तावेज़ बताते हैं वो कहते हैं ” अधिकतर युवा दरोगाओं को विवेचना में आ रहे कठिन उर्दू शब्दों को समझने के लिए या तो सीनियर के पास जाना पड़ता है अथवा गूगल करते हैं। दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से मेरे साथी युवा दरोगाओं में विवेचना की बारीकियां कम है और इसकी एक वज़ह भाषा भी है। यह किताब काफी उपयोगी है और इससे निश्चित तौर पर मदद मिलेगी। “
वैसे मज़ेदार बात यह है कि यह समस्या सिर्फ युवा दरोगाओं में नही है बल्कि बहुत से बडे अधिकारी भी ‘पुलिस की ज़बान’ में अक्सर उलझ जाते है,इसके लिए वो उर्दू अनुवादक की सलाह लेते हैं। मुजफ्फरनगर के अधिवक्ता आज़म बताते हैं कि अधिकतर अदालती दस्तावेज़ भी उर्दू में ही है जिन्हें हिंदी लिपि में लिखा गया है। इसलिए पुलिस की भाषा की बारीकी की जानकारी समझने में यह किताब मदद करेगी।